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३५२ * श्री लबेचू समाजका इतिहास * इसमें भर्तृ पुरीय ( भटेवर ) गच्छके जैनाचार्यके उपदेशसे मेवाड़के राजा तेजसिंहकी राणी जयतल्ल देवीके द्वारा श्याम पार्श्वनाथका मन्दिर बनवाने तथा उस ( वसही ) मन्दिरके पीछे हिस्सेमें उसी गच्छके आचार्य प्रद्युम्न सूरीको महाराजकुल ( महारावल ) राणा समरसिंहकी ओरसे मठके. लिये भूमि दी एवं तलहटी ( आघाट, आहाड़, खेएड़ और सज्जतपुर ) की मण्डवियोंको देना लिखा है। इनकी समरसिंहकी माता चाचिकदेव चोहानकी पुत्री थी और चित्तोड़के राज्य पर जालोरके सोनगरे चोहानोंका अधिकार विक्रम सम्बत् १३८२ तक थो। जब सुल्तान अलाउद्दीनके सेनापति कमालुद्दीनके कान्हदेव और उसका पुत्र वीरभदेवको मारकर जालोरको किला छीन लिया। वि० सं० १३६६ में तब कान्हणदेवका भाई मालदेव चित्तोड़का राजा हुआ और सीसोदेके राणा हमीरको उन मालदेवने अपनी पत्रीका विवाह कर दिया। ऐसा हम स्यात् ऊपर भी लिख चुके हैं और बङ्गादेवका पुत्र (देवीसिंह बङ्गदेवके कई पुत्र थे हिंगुल आदि। देवीसिंहने विक्रम सम्बत् १२६८ में मीनोंसे बंदी ( वृन्दावती) की देवी