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* श्री लँबेच समाजका इतिहास * ३४६ पुत्र जैत्रमल्लपे था। उससे युद्ध कर जयसिंह जैत्रसिंह दूसरा भी कहते हैं, जो सीसोदे जैत्रसिंहक समकालीन थे। उनसे युद्ध कर जैत्रसिंहने जिन कीतू किर्तिपालसिंहकी पोती व्याही थी। उनके विषयमें राज० उदय० इति० पेज ५११ में लिखा है चाहुमान, श्रीकीतुकनृप, श्री अल्लावदीन सुरत्राण जैत्र वष्यवंश्य, श्री भुवनसिंह इन चोहान कीतू कीर्तिपालने सुल्तान अल्लाउद्दीनको जीत कर मेवाड़ लिया था। फिर उनसे जत्रसिंहने लिया। जैत्रसिंहके पुत्र भुवनसिंह मेवाड़ और अर्थणा लिया और इनका पुत्र तेजसिंह था। ये सब जैन क्षत्रिय राजा थे। तेजसिंहकी रानी जयतल्लादेवी जो समरसिंहकी माता थी चित्तौड़ पर श्री पार्श्वनाथका मन्दिर बनवाया ( चीरबैका शिलाले० ) श्री चित्रकूट मेदपाटाधिपति श्री तेजसिंह राज्ञा, श्री जय. तल्लदेव्या, श्री श्याम पार्श्वनाथ बसही स्वश्रेयसेकारिता समरसिंहके समय वि० सं० १२३५ बैशाख सुदी ५ चित्तौड़का शिलालेख
यः श्री जैसलकार्य भवदुत्थूण करणांगणेप्रहरन् । पंचलगुडिकेन समं प्रकटवलो जैत्रमल्लेन ॥२८॥