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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
भी थीं और वहाँसे ही श्री तारंगाजी सिद्धक्षेत्र पर लाड़ चढ़ाने को ले जाते थे ।
श्रीवीर महावीर निर्वाणके समय ( दीपमालिका ) दीवाली पर और दिगम्बर जैन, श्वेताम्बर जैन दोनों सम्प्रदाय के घर थे, ( वहां पर्वत ) जिसे डंगर बोलते हैं, डूंगर पर ( पर्वत पर ) १००० एक हजार विक्रम संवत् शिलालेखकी प्रतिमा दिगम्बर जिन विम्व थे। तब हमें इतिहासका कुछ भी बोध न था, हमें क्या मालूम कि यहाँ चोहानोंका राज्य रहा और चोहान ही हमलोग लम्बेचू हैं। नहीं तो हम उन प्रतिमाओं के शिलालेख उतोर लाते, उस समय भी राणा केशरीसिंहकी जगह पर एक राणाप्रताप सिंह पहुँचे थे । एक गद्दीसे जहांसे ईडरगढ़की गद्दीका ( कनिष्क ) सम्बन्ध था राणा केशरीसिंह के उस समय १८ राणियां थीं, जब राणा नहीं रहे तब रोणा प्रतापसिंह गद्दी पर बैठे । उनकी लटक कुछ आर्य-धर्मकी थी, किसीको माथे पर तिलक नहीं लगाने देते थे । कँवारके महीने में बड़े-बड़े घड़ों में छेदकर दीपक रख मुहल्ला के बीच औरतें नाचती गाती थीं । लखपती करोड़पतियोंकी स्त्रियें उन्हें