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* श्री लँबेचू समाजका इतहास * ३२५ ब्रामण विद्वान भी इस प्रकार मानते हैं, जो ऊपर ३ श्लोक दिये हैं। ६४ से ६६ तक उनका आशय इस प्रकार है, ये श्लोक स्कन्धपुराण प्रभासखंडके हैं। जो १६ वें अध्याय में दिये हैं पृ० २२१ में । ___ अर्थ-बामनोऽपि वामनावतार भी या बामन किसी व्यक्तिका नाम हो, वे उस गिरनार पर्वत पर उस तीर्थका अवगाहन किया और सूर्यबिम्बमें या सूर्योदय पर यादृशरूपः जैसे रूपमें जैसे स्वरूपमें ( शिवोदृष्ट ) महादेवको देखा । कैसा देखा, दिगम्बरः दिशा ही अम्बर वस्त्र जिनके अर्थात् नममुद्रा, पद्मासन लगायें, सौम्यदृष्टि नाशाग्रदृष्टि लगाये ध्यानस्थ वैसा ही उनका स्मरण कर वैसी ही महामूर्ति जनमूर्ति जिनमूर्ति प्रति स्थापित कर प्रतिष्ठा कर अपनी मनोऽभीष्ठ सिद्धिके लिये महामूर्तिको स्थापित कर ( वासरं ) उस दिन पूजयामास पूजा की और उसके बाद मनोऽभीष्ट सिद्धि, मनोवांच्छित सिद्धि जो थी मनमें वह या सिद्धि मोक्षसिद्धि प्राप्त की या प्रकार वह बामन नेमिनाथ शिव ऐसा नाम करता भया। अथवा दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि सूर्य विम्बे सूर्योदय पर