________________
३२०
* श्री लबेचू समाजका इतिहास
कभी उन्हें खिलाने बैठे अनेक खाद्यपदार्थ रख, परन्तु खाय कौन मुर्दा शरीर क्या करें। कुछ नहीं ६ माह बाद पाण्डव और कुन्ती आई बलदेवजीको प्रति बुद्ध किया । कृष्णका शरीर जलाया, नवमें नारायण थे । नारायणका शरीर ६ महीना तक सड़ता नहीं, पोछे सड़ने लगता है । तबतक जलाय ही दिया वलदेवजी विरक्त हो जैनी दीक्षा धारण कर दिगम्बर मुनि हो गये तपश्चरण करने लगे ।
श्री नेमिनाथ भगवान् कुछ दिन विहार कर सब जगह समवसरण सहित जाकर उपदेश दिया । अनगणित जीवोंका उद्धार किया । फिर विहार करके लौटकर श्री गिरनार पर्वत पर ( गिरनारको ) उज्जैन भी कहते हैं । उस गिरनार पर आकर योग निरोध कर आषाढ़ सुदी ८ को निर्वाण-पदको प्राप्त कर अपने शुद्ध स्वरूप अनन्त गुणादि स्वविभूतिको प्राप्त हो, अनन्त सुखके भोक्ता हो लोक शिखर सिद्धालय में विराजमान हुए और बलदेवजी दुर्द्धर तपश्चरण कर, समाधि मरण कर ५ वें स्वर्ग ब्रह्मस्वर्ग में पद्म विमानमें देव हुए । वहाँ संचय मनुष्य हो मोक्ष जायेंगे और गिरनार पर्वत पर जिस स्थान से मोक्ष गये,