________________
* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३१६ उनसे सब समाचार कहना ये मेरी कौस्तुभ मणि ले जाओ वे तुम्हारा राज्याभिषेक कर राज्य पदपर बैठायेंगे तुम बड़े भाई हो ऐसा कहकर जरत्कुमारको विदा किया और अपने संसारकी विलक्षणता और विनश्वरता पर विचार करने लगे कि देखो इस संसारमें जन्म धारण कर आत्मकल्याणके लिये तपश्चरण नहीं किया। लड़ाईके झगड़में ही रहे पहिले कंससे युद्ध भया फिर जरासिंधसे फिर कौरव पाण्डवों के युद्ध में पाण्डव कृष्णकी बुआ कुन्ती तथा मान्द्रीके पुत्र थे। इस प्रकार मोह क्रोध राग द्वपके वशीभूत संसारके दुख उठाता है। इतने में ही स्मरण आया कि जरत्कुमार हमको मार जावे क्रोधावेशमें प्राण निकल गये । ऐसा लेख महाभारतमें भी है कि जरतकुमारके तीरसे प्राण गये और इन कृष्ण महाराजका आत्मा भविष्यत कालके तीसरे सुप्रभदेव नामके तीसरे तीर्थङ्कर होंगे। भविष्यत् तीर्थङ्करी की पूजामें उनकी आत्मा सुप्रभदेवकी भी पूजा होती है स्वरूप भेद है। वलदेव महाराज पानी लेकर आये तो भाईको मरा पाया बहुत दुखी भये बेहोश हो गये। होश आने पर मोहवश उनके शरीरको ६ माह तक लिये फिरे।