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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * पानीकी प्यास लगी। श्रीवलदेवजी पानीका निमाण ढूंढते पानी लेने गये, इधर श्रीकृष्ण महाराज ऐसा विचार कर कि पश्चिम तरफ तो गिरनार परवत है। श्रीनेमि भगवान्का निर्वाण क्षेत्र है, और पूर्व में श्री सम्मेदाचल (सम्मेद शिखर) श्रोपार्श्वनाथादि असंख्य तीर्थकर और मुनि मोक्ष पधारे हैं पैर नहीं किये और उत्तर तरफ कैलाश है, जहाँ श्री ऋषभदेव जिनके बैलका चिन्ह था वे ऋषभदेव भगवान् मोक्ष गये हैं, जिनको कैलाशपति महादेव कहकर अब भी भगवतके पञ्चमस्कन्धमें लिखित श्री ऋषभावतार मान पूजते हैं । बैल नादिया जिनका जगत् प्रसिद्ध है, और केशरियानाथ श्री ऋषभदेव तीथमें ऋषभदेव जिनमन्दिरमें श्रीऋषभ देव जिन भगवान्की पद्मासन श्यामवर्ण करीब ४ पांच फुट को मूर्ति है। हम संवत् १९७८ में यात्रार्थ गये, तब पूजन किया। वहाँ उस मूर्ति मन्दिर वेदीके अगाड़ी मण्डपमें पूजा करते हैं और उसके आगे दालानमें वैष्णव हिन्द भाई पूजा करते हैं। भागवतका चबूतरा बोलत हैं, आगे उचास दालानमें हाथी पर श्रीऋषभदेवकी माता मरुदेवी और पिता नाभि राजाकी मूर्ति है । मरुदेवीके मूर्ति अवश्य