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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३११ से ढक देंगे दीपायनको क्रोध आ जायगा, जब द्वारका भस्म होगी, जर यादव और मुनि सब भस्म हो जायंगे, तुम और कृष्ण बचोगे, आषाढ सुदी ८ को कृष्णकी मृत्यु कौशाम्बोके वनमें जरत्कुमारके तीर लगनेसे होगी भगवान् गिरनारसे विहार कर गये, सब जगह समवसरण सहित जाकर उपदेश दिये। अगणित जीवोंका उद्धार किया फिर विहार काके लौटकर गिरनार पर्वत पर (गिरनारको) उज्जयन्त भी कहते हैं। उस गिरनार पर आकर योगी निराध कर, निर्वाण पदको प्राप्त हो, अपने शुद्ध स्वरूप अनन्त गुणादि स्व विभूतिको प्राप्तकर अनन्त सुखको प्राप्त होकर लोक शिखर सिद्धालयमें विराजमान हुये। इधर १२ वर्ष होने पर द्वारका भस्म न भई कारण १२ वर्षमें ४ मलमास बढ़ जाते हैं उनको गिना नहीं। विनाश काले विपरीत बुद्धि हो, लौटकर फिर द्वारिकामें यादव आ गये
और दीपायन मुनि भी द्वारका उद्यान वनमें योगधर तिष्ठे यादव सब महुवे वाला तालावका पानी पीकर उन्मत्त हो दीपायन मुनिको सताया, मुनि क्रछ हुये वामभुजासे तैजस पुत्तल, अग्नि रूप निकलकर द्वारका भस्म करी, जो