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* श्री लँवेचू समाजका इतिहास * ३०६ पशुओंकी भाषा रूप हो जाती। सब प्राणी पशु तक समझते हैं . जैसे मेघ बरसता है तो जलका तो एक ही रूप होता है, परन्तु जैमा. वृक्ष होता है उसी रूप रस होकर उसको पुष्टि करता है। उसी माफिक सबकी भाषा रूप हो सबकी समझमें आती है और फिर उसीको विशेष रूप गणधरमति श्रत अवधि मनःपर्यय चार ज्ञान के धारक गणेश सब जीवोंको अक्षर रूप करके समाधान करते हैं। श्री नेमिनाथ भगवान् आश्विन शुदी १ को केवल ज्ञान प्रकाशमान हो सर्वज्ञ पद, अरहंत पद प्राप्त भया। सबको जिनधर्म, वीतरागधर्म, अहिंसाधर्मका उपदेश दिया, इसीसे त्रिलोक पूज्य हुए। जब तक संसारी प्राणी अपने आत्माको नहीं जानता, नहीं अनुभव करता, तब तक यह मंमारके कार्योंको ही उपादेय श्रेष्ठ समझता। चेतनमें जड़ वृद्धि और जड़में चेतन बुद्धि धरता। माही, क्रोधी, मानी, मायावी और लोभी होकर अपना भी घात करता और पर जीवोंका घात नुकसान कर अपनेको अच्छा मानता। यहाँ तक पतित हो जाता है कि प्राणीके घात करनेमें और मद्य-मांस-मधु सेवन, हिंसा,