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३०८ * श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * ज्योतिषी देव, १० वीं में सौधर्मादि १६ स्वर्ग तक देव, ११ वी सभामें बलदेव, वासुदेव आदि राजागण, १२ वीं सभामें सिंह गजमृग वृपभादिक थलचर हंत गरुडादि नभचर आदि अनेक जातिक नभचरतिष्ठे सिंही सुत स्पृश्यति पुत्रधियाकुरंगी । जिनकं जाति वैर मिट जा सिंही मृगवच्चको गो सिंघिया। व्याघ्रीतनुजमपि गौ बरहा विमली।
इसके बीचमें तीन कटनीदार ( भगवान् गन्धकुटी) होती है, दिब्य मुगन्धमयी होती है। उस गन्ध कुटीमें सिंहासन उसके ऊपर भगवान् चार अंगुल अघर विराजते हैं। समवसरणमें भगवान् होके सब प्राणियोंको वीतराग जिनधर्मका श्री नेमिनाथ भगवान्ने ज्ञानावरण आदि चार घातियाँ कर्मोंका नाश कर, सर्वज्ञ होकर, अर्हत् पद प्राप्त कर उपदेश दिया-जो प्राणीमात्रके लिये हितकर है। यह समवसरण सभा इन्द्रकी आज्ञासे कुबेर रचता है। भगवान्की तीर्थङ्कर प्रकृतिके प्रकर्ष पुण्यके उदयसै, समस्त प्राणियोंके भाग्यके उदयसे अनक्षरी मेघगर्जनावतु दिव्य ध्वनि खिरती है, और सब कानोंमें जानेसे देव मनुष्य