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३०६ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ऊँचे पीठ तिसपर मानस्तम्भ तिनपर जिनविम्ब जिनका कोशोंसे दर्शन हो, जमीनसे ५०० धनुष ऊँचा समवसरण होता है। मानस्तम्भपर धजदण्ड मान स्तम्भके आगे चारों दिशाओंमें ४ तालाब और तालाबोंके आगे पर कोटा वज्रमयी चोगिरद परिक्रमा रूपमें परकोटाके भीतर खाई
और खाईके आगे वेलाफल मणिकावन और वेलावनके आगे सुवर्णमयी कोट उस कोटमें चारों दिशामें चाँदीके ४ दरवाजे और दरवाजोंके दोनों तरफ मणिमई तोरण एक-एक दरवाजेमें छत्र, चमर, कलश, झाड़ी, दर्पण, थल, वीजना, स्वस्तीक, ध्वजा ये आठ मङ्गल द्रव्य सुसज्जित हैं और दरवाजेके घुसते ही दोनों तरफ नाट्यशालायें गान विद्याकी नाट्यशालाकं आगे चारों दिशाओं में ४ वन अशोक वन, सप्तपर्ण, (सप्तच्छद) चंपक, आम्र, इन वनोंमें मनोहर नावड़ी वेवावड़ी तोरण दरवाजे सहित सुशोभित हैं। नन्दा १ नन्दोत्तरा २ नन्दवती ३ अभिनन्दनी ४ आनन्दा ५ नन्दघोषा ६ ये अशोक वनमें विजया १ अभिजया २ जयन्ती ३ वैजयन्ती ४ अपराजिता ५ जयोतरा ६ सप्तपर्णवन में कुमुदा १ नलिनी पद्मादि छ वावड़ी चम्पक