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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३०५ अनन्तवीर्य अनन्तचतुष्टयरूप अंतरङ्ग लक्ष्मी और समवसरण सभा जो इन्द्र आकर रचता है। १२ सभा बीचमें १२ दरी और वीचमें सुगन्धमय गन्धकुटी तीन पीटदार ऊपर पीठके गुमठीदार शिखर ऊपर पीठपर सिंहासन उसके ऊपर अधर ४ अंगुल भगवान् विराजते चारों तरफ बारह दरी और उसकी चोगिरह एक के बाद एक ६ भूमि होती । प्राकारो नाट्यशाला द्वितयमुपवनं स्तूप हावलीच २। मानस्तंभाः सरांसि प्रविमल विलसत्खातिका पुष्पवाटी १ शालः कल्पद्रुमाणां । इत्यादि श्लोक हैं।
(समवसरण) का कुछ संक्षेप लिखते हैं। चारों दिशाओंमें चार दरवाजे प्रत्येक दरवाजके आगे एक एक मानस्तन्भ श्रीनेमिनाथका समवसरण (उपदेश सभा) डंढ़ योजन छ कोशके प्रमाणमें था। कमलके समान गोल होता है, प्रथमही हम दरवाजेसे ही संक्षपमें कथन लिखते हैं । प्रथमही पहले दरवाजेसे दो दो कोशके विस्तार लिये चारों दिशाओंमें राजमार्ग थे तीन राजमार्गके प्रारम्भमें ही तीन पीठ तीन २ कटनीदार पीठ पद्म रागमणिके लाल थे। वर्तलाकार गोल आधा कोश चौड़े, दो कोश