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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
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हम उनको धोती धोती हैं जो नाग सय्यादलते हैं और पांचजन्य शंखपूरते हैं तब नेमिनाथ कुमार चोलमें आकर तुरन्त चले गये और नाग शय्या दली तथा शङ्ख इतने उच्च स्वरसे वजाया जो जहाँ राजसभामें कृष्ण महाराज वैठे थे। सिंहासनपर शंखको धनि सुन सारी सभा अचंभेमें आगई यह शंखध्वनि किसनेकी दौड़कर नागशय्यापर पहुंचे देखा कि श्रीनेमिकुमार खड़े हैं इन्हींने किया तपास किया ऐसा क्योंकिया मालम हुआ कि जाम्वुवतीने गर्वके भरे वचनकहै इससे ऐसा हुआ कृष्ण महाराजने जाम्बुवतीको फटकारा
और श्रीकृष्णने अपने मनमें विचार किया कि ये सर्वमान्य है इनकी देवसेवा करते हैं इनके सामने हम राज्य कार्यमें कैसे शकेंगे दूसरे निमित्तज्ञानी ज्योतिषीने यह पहिले ही कहि दिया था कि ये विरक्त हो जायँगे इससे श्रीक ष्ण बड़े भाई थे उमरमें बड़े थे इन्होंने जल्दीसेही राजा उग्रसन की पुत्री राजमती राजकन्यासे श्रीनेमिकुमारका सम्बन्ध स्वीकार करालिया और विवाह रचदिया जूनागढ़ वारातचली श्रीनेमिकुमार मोरमुकुट केशरिया जामा आदि विवाहक रशमें पूरोकर रथमें विराजमान होकर जूनागढ़ को चले