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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३०१ पास पहुँच गये । उसके शस्त्र सब छेदे, आखिरमें जरासिन्ध सुदर्शनको चलाया। उसके निवारणके लिये यादव पक्षक सब राजा कृष्ण वलभद्रादि शस्त्र ले-ले कर खड़े भये । वह चक्र किसीसे न रुका चला ही आया जिसकी देव रक्षा कर, परन्तु वह चक्र श्रीकृष्ण नवमें नारायण थे इनके पुण्यक प्रकर्षसे वह प्रदक्षिणा देकर कृष्णकं दाहिनी तरफ आकर दक्षिण हाथमें आ गया। तब जरासिन्ध विचारता भया कि देखो संसारकी दशा जो मेरा परम सहायक था, जिससे मैंने तीन खण्डक राजा वश किये वही मेरा पण्य क्षीण होनेसे शत्रुके पास चला गया। धिकार है इस संसारकी मायाको ! तपश्चरण कर मैंने सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्ररूप मोक्षमार्गका अवलम्बन कर अपना हित न किया फिर क्षत्रियों के मान ही धन होता है सो क्रोधमें आकर कृष्णसे कहने लगा-देख गोपोंके पला गोप चक्र क्यों नहीं चलाता ? तब कृष्णने चक्र चलाकर घात किया। चक्र जब कृष्णके हाथमें गया था देवोंने ऊपरसे पुष्पवृष्टि कर दिव्य ध्वनि की थी-कि ये नवमें नारायण बलभद्र हैं विजयी होंगे। जरासिन्ध नवमा प्रतिनारायण