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३०२ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * था नवमें नारायण कृष्णकं हाथसे मरण निश्चित था मारा गया। जब ये सव यादव हर्षितभये कृष्णने पांचजन्यशंखवजाया सेनामें जयके वादित्र वाजे कुवेर कृष्णकी आज्ञाले देवलोकमें गया जरासिंध को मृतक पड़ा देख कृष्णके अश्रुपातभया ( आँसू आये ) देखो संसारकी विचित्रगति है सवराजा लोग कृष्णकी आज्ञालेय अपने २ स्थान गये समुद्र विजय वसुदेवादिक कृष्णके पास आये हर्षित होते हुये कृष्ण सबके पैरों पड़े प्रणाम किया सव बड़े भाइयोंको प्रणामकर विनय किया और उस क्षेत्र में आनन्द भया आनन्दपुर वसाया तथा सव गादव लोटकर द्वारावती आये महान उत्सवभया तव कृष्णने जरासिंधके पुत्र सिंहदेवका राज्याभिषक कराय राजगृहका राज्य दिया उग्रसेनके पुत्रको मथुराका राज्य दिया हस्तनापुरका राज्य पाण्डवोंको दिया आनन्दपुरमें जिनमन्दिर कराये द्वारावतीमें सुखसे रहने लगे एक दिन श्रीनेमिकुमार स्नान करिचुके तव कृष्णकी ८ पट्टरानियोंमें से जाम्बुवती पट्टरोनी अपनी भावजसे कहा कि धोती धोदेउ तव जाम्वुवतीने नेमिकुमारसे गर्वके वचन कहै कि