________________
* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * दृढ़वर्मा विक्रान्त चन्द्रचर्मा आदि बड़े-बड़े राजा अपनी २ सेना सहित हरिके कुलकी रक्षामें खड़े थे। यह गरुड़व्यूह वसुदेवने रचा, बसुदेव महाप्रवीण महारथी चक्रव्यूह भेदनेको उद्यत भये और भी वसुदेव वलदेव तथा कृष्णको लिवाकर विजयाई पर्वतके दक्षिण उत्तर श्रेणीके राजा विद्याधरोके पास गये। वसुदेवके श्वसुर अशनिवेग हरिग्रीव विद्य द्वंग जो वसुदेवके मित्र थे वे सब आये और वसुदेवके शत्र जो विद्याधर राजा थे वे जरासिंधके कटकमें आये
और यह सुन फिर प्रद्य नकुमार शंवुकुमार पौत्रोंको ले विजया में जो इनके मित्र थे सबको लाये। इन्द्रके भण्डारी कुवेरने वलदेवको सिंहविद्याका दिव्य शस्त्रांसे भरा हुआ रथ दिया और कृष्णको गरुड़ नामका रथ दिया । ____ आयुधोंसे पूर्ण इन रथों पर बैठे तथा सुभटोंका नायक सेनापति कृष्णका बड़ा भाई अनावृष्टि तथा अर्जन समुद्रविजयादि सब राजाआंने विद्याधर राजाओंको ( अगवानी) अगाड़ी जाकर ले आये सब सहायक भये । युद्धके वाद्ययन्त्र वादित्र दोऊ सेनामें बजने लगे, महायुद्ध भया, बहुत संग्राम भया जरासिंधका चक्रव्यूह भेदकर कृष्ण वलभद्र जरासिंधके