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२८६ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास
कही आनन्द मेरो दिवाई आनन्द मेरीके नाद कर सबको चलनेका विचार जनाया, तब सबही लोक चलनेको उद्यमी भये, आनन्द भेरीका नाद सुन सबही प्रजा चारो वर्ण अपने कुटुम्ब सहित यादवों के साथ चलवेकुं उद्यमी भये, Raat यदुवंश अन्धकवृष्टिके और भोजकवृष्टिके चलवेको उद्यमी भये, मथुरा और शौर्यपुरके और वीरपुर के सबही लोक प्रस्थान करते भये, जैसे कोई क्रीड़ा के अर्थ वनवि जाय, तैसे देशतज विदेशको उद्यमी भये, अठारह कोटि घर और अप्रमाण धनके भरे राजाके साथ निकसे यादवों को राज्य ही प्रिय जिनको शुभतिथि शुभ नक्षत्र शुभ योग देखकर ये यादव भूपाल प्रयाण करते भये, यद्यपि बलदेव बासुदेवक मनमें यह विचार आया जो जरासिंध से अबही लड़, परन्तु बड़ोंकी आज्ञासे प्रयाण ही उन्होंने कही इस समय करनेका विचार किया
तुम्हारी अवस्था नाहीं, तब ये बड़ोंके आज्ञाकारी उनके कहने से प्रयाण ही किया, सो अनेक देशनिकों उल्लंघिकर ये पश्चिमकी तरफ गये । सो विन्ध्याचलकं समीप डेरा किया । विन्ध्याचल काही भाग ( गिरनार पर्वत है )