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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २८६ की और करने गये तब समुद्रको देख बहुत प्रसन्न भये डेरा पर आये फिर एक दिन शुभ मुहूर्तमें समुद्र के तटपर स्थान की इच्छासे समुद्र तटपर श्री नेमीकुमार को साथ लेकर बलभद्र श्रीकृष्ण तटपर कुशासन बिछाय तीन उपवास धारत भये । तेला उपवास किया और णमोकार मन्त्रका जाप्य किया। समुद्रक तीर तिष्ठे तब सौ धर्म इन्द्रकी आज्ञासे गौतमनामा देव आय करि इनका बहुत सन्मान किया और कुवेरने इन्द्रकी आज्ञासे श्री नेमि जीनेश्वरकी भक्ति और पुण्य प्रकर्ष से तथा बलदेव वासुदेव (कृष्ण) के अतिशय पुण्यकरि द्वारावती द्वारिकापुरी निर्मापी (रची) १२ योजन लम्बी ६ योजन चौड़ी नगरी बस्ती जिसमें रत्नमुवर्णादि से रचे अतिसुन्दर राजमहल निर्मापे। और द्वारावतीमें राजमहल १८ अठारह खणके निर्मापे । मन्दिर के सामने बड़े चबूतरा सभामण्डप आदि बनाये और कुवेर कृष्णको एती वस्तु मुकुटहार कौस्तुभमणि पीतवस्त्र नक्षत्रमाला आभूषण कुमुदवतीगदा शक्ति नन्दकखड्ग सारंग धनुष और दो तरकस वज्रमयवाण दिव्यास्त्रसे भरा रथ ताड़पत्र के आकारकी ध्वजा छत्र इत्यादि दिये और
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