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२६२ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * प्रसन्न भया ६ माहकी सन्धिमानी। छ महीनेके भीतर तुम युद्धका (सरंजाम) सामग्री कर लो दृतका बहुत सन्मान किया बहुत बक्शीस दी सो वह दूत आकर राजा समुद्र विजयादिकसे सब बात कही। जरासिंध और सैन्य सब राजाओं सहित कुरुक्षेत्रमें युद्ध करनेको आ डटा ( आकर डरा डाले ) यादव सावधान होकर अपने पक्षक सब राजाओंको सचित कर कुरुक्षेत्रमें चलनेका प्रयत्न किया (प्रोग्राम बनाया) इधर जरासिंध भी अपने मंत्रियोंको भीतरी भयसे (डाटता हुआ) उलाहना देता हुआ बोलो अहो मंत्री हो ये शत्रु अब तक क्या ढीलं छोड़े। ये शत्रु ममुद्र विपे क्षणभंगुर तरंगकी नाही वृद्धिको प्राप्त भये सो तुम मेरेको क्यों नहीं कहा कारण कहा मंत्री हैं सो राजाके मंत्र हैं सब तरफकी खबर मंत्री हलकारोंसे मंगाकर राजासे कहैं और मंत्री हो न कहै तो और कौन कहै मन्त्री राज्य के रक्षक होते हैं। मैं तो ऐश्वर्यक मदमें असावधान रहा। मैं जानता तो एते दिन शत्रु द्वारकामें क्यो रहै तुम लोग जानते हुए भी यह वात प्रकट क्यों न करी और जो तुम भी न जानी तो यह मन्त्रीपद केसा। मैं तो तुम्हारे