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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
श्री नेमिकुमार छोटे सो इनके लिये देवोपनीत ऋतु ऋतुकी वस्त्रादि वस्तुयें लाते भये । बलदेवको दो नीलवस्त्र रत्नमाला मुकुट गदा हल मूशल धनुषवाण दो तरकस दिव्यास्त्र से भरारथ ताडपत्राकार ध्वजा तथा छत्र दीने और शौर्य्यपुर वालोंको शौर्यपुर मथुरा वालोंको मथुरा और वीरपुरके वासियोंको वीरपुर महल्ला टोला बसाये और कोट दरवाजे गोपुर द्वार आदि से सुशोभित बनाकर कुबेरादि देवोने यादवों से रहने की प्रार्थनाकी ये सब बस गये जिसमें सुन्दर कूप वावड़ी तालाब बन उपवन सुशोभित बनाये सुखसे निवास करने लगे पीछे जरासिंधको मालूम हुआ कि यादव जीते हैं और पश्चिम समुद्र तटपर द्वारावती द्वारकामें बसे हैं तब उसने यादवोंके पास प्रतिसेन नामादूत भेजा सो आश्चर्य कर भरी द्वारावतीमें प्रवेश कर जहाँ यादवों की सभा सब सामन्त और राजाओंसे भरी थी दूतने प्रणाम कर निवेदन किया चक्रवर्ती राजा जरासिंधने भेजा है और कहा है कि मेरा अपराध कोई है नाहीं आपने ही अपराध किया आप अपने अपराधके भय से समुद्र के किनारे बसे मैंने तिहारा क्या अनिष्ट किया जो भयमान समुद्रके