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* श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * २६५ हैं। देवबल समयबल बुद्धिवल सब उनमें हैं और दैव उनके सहाई है, सो हम जानी सोते नाहर (शेर) को न जगावे, ज्योंहैं त्योंही रहो, ऐसा जान हम देश काल विचार धीरे रहै। अपना और पराया बल विचारना समय विचारना, यही प्रशंसा योग्य है। हम यह विचार चुप रहै। सेवक वही जो स्वामीकी हितको कहै, अब आप उचित समझ सो कर यह कहि मंत्री चुप हो गये, जरासिंघने दूत द्वारावती भेजा और इतने कहा तथा यादवों का दूत आया, और छ माह बाद युद्ध ठहरा कुरुक्षेत्रमें युद्ध भया, प्रथमही जब द्वारावतीसे यादव प्रस्थान करनेको उद्यत हुये तब श्रीकृष्ण महाराज श्रीतीर्थङ्कर नेमिकुमार भगवान जो मति श्रुत अवधि तीन ज्ञानके धारक जन्मसे ही थे। उनसे युद्ध में विजय होनेकी पूछो, तब भगवान नेमिकुमार हँसमुख हो, मुसकाने तब श्रीकृष्ण अपनी विजय जान कुरुक्षेत्रको श्रीकृष्ण बलभद्रादि सबही यादव राजाओंने सेना सहित कुरुक्षेत्रको प्रयाण किया। यादवोंकी सेनामें यादवोंके मित्र सब यादवोंमें आय मिले। तहाँ कई एक दक्षिणदिशिके केई उत्तर दिशाके बड़े २ राजा अपनी सकल