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* लैबेचू समाजका इतिहास * २६७ में और शस्त्रमें निपुण महा दयावान निवलसे न लड़ें अपनेसे समान ) बराबरी वाले या अधिकसे लड़ें, ये महारथी ये ( महारथी ) उसे कहते अकेला ही ११ ग्यारह हजार हाथियोंसे युद्ध करै, वह महारथी कहिये, और समुद्र विजयसे छोटे बसुदेवसे बड़े ८ भाई अक्षोभि आदि और शम्बुकुमार तथा भोज विद्रथ द्रपद ( द्रौपदीका पिता) सिंहराज शल्य वज्र मुयोधन पौंड पद्मरथ कपिल भगदत्त मेघ क्षेम धूर्त ये राजा समरथी थे, महानेमि अवर निषद उल्मु दुर्मुख कृष्ण क तिवर्मा राजा विराट चारु कृष्ण शकुनि पवन भानु दुःशासन शिखण्डी वाहीक सोमदत्त दव शर्मा वक्र वेणुदारी विक्रान्त इत्यादि राजा अर्द्धरथी थे। और जरामिंधक तरफ कर्ण दुर्योधन भीष्म कालयवन धृतराष्ट्र सब पुत्र इत्यादि सो जरासिंधने अपने कटकमें चक्रव्यूह रचा जरासिंधका सनापति हिरण्यनाभि ज़रासिंध क तरफ चक्रव्यूह रचा। चक्रव्यूह के सा, चक्रव्यूह कहिये, चक्रक समान वर्तलाकार ( गोल ) सनाका आकार रचा, चक्रक १ हजार अरा एक २ आरेक पास एक २ राजा हजार राजा और एक २ राजा के समीप सो १००