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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २६३ भरोसे रहा सेवकका यह धर्म नाही जो स्वामीको शत्र मित्र निकी बात न कहै जो महा उद्यम करि राजा शत्रुओं का उपाय न करै तो (परिपाक) परिणाम फल विषे बड़ा दुखदायी होय जैसे रोग उपजा और तत्काल ही उपाय न कर तो रोग बढ़ जाय तब मिटना उसका बहुत कठिन (मुश्किल) पहिलं तो यादवनिने मेरा जमाई कंस मारा । दूसरे मेराभाई अपराजितको मारा अपराधकरि । समुद्रक शरण गये मेरे समुद्रक जीतनेक अनेक उपाय हैं जब तक मैं उपाय न करूँ तब तक मेरा शत्रु चाहैं जहां हैं और जो मैं क्रोध करूँ तो समुद्र में कैसे रह सके । इतनं दिन मैंने न जाना तातें (कुटुम्बसहित द्वारका रहै अबमें जानी तब मेरे बैरी कैस निश्चिन्त रहैं। ____ यातें अब तुम साम कहिये, सान्तता और दाम कहिये, दान देना ये दोऊ उपाय तो सर्वथा तजो और भेद कहिये तोड़ाफोड़ी और दण्ड कहिये, मारना ये उपाय निश्चय करो, ये अपराधी साम और दाम योग्य नाहीं यह बात सुनकर मंत्री नमस्कार कर धनी शान्तता उपजाय हाथ जौड़ विनती करी महीपति जरासिंध सो कही कि हे नाथ