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* श्री लबेचू समाजका इतिहास * २६१ किनारे बसे । चक्रेश्वरकी आज्ञा है कि आप लोग आयकर मुझसे नवो और मेरी सेवाकरहु नहींमें आयकरि समुद्रकाहू पानकर जाऊँगा। तव बलदेव बासुदेव सब यादव टंढ़ी भोंहकर 'टेढ़ी भृकुटी कर बोले बाकी मृत्यु निकट आई है जो ऐसे गर्वके वचन कहेहै सो अब समस्त सेना सहित आओ हम भी संग्रामके अभिलाषी हैं तुम्हारी भलीभाँति पाहुणगति करेंगे। (तुम्हें मुधारेंगे) ऐसे वचन कह दूतको विदा किया और इधर समुद्र विजय के बड़े २ मन्त्री विमल अमल शार्दूल येतीनो मंत्री मन्त्रमें निपुण मंत्र करि राजा समुद्र विजयको कहते भये हे राजन् राजनीतिमें ४ उपाय है साम, दाम, दण्ड, भेद साम मृदुता सो अपनी और शत्रु की शान्तिके लिये हैं। सो जरासिंधसे सलाह करिये संग्राम न करिये तो नरसंहार न हो वे बहुत भला है। एकही कुलके सब हैं तब राजा कही क्या हानि है सलाह करो। तब एक लोह जंघनामा दुतको अपनी सेनासे सन्मानकर जहाँ मालवदेशमें सेनासहित जरासिंध आ गया था वहाँ भेजा वह दूत जरासिंधके पास जाकर सन्धिकी । बात करी दत महापण्डित इसके बचनसे प्रतिहरि जरासिंध