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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
हैं उनमें कुछ लोग रहते भी हैं और श्री तीर्थङ्कर भगवान के गर्भ में आनेके पहिले ६ माह पहिले रत्नवृष्टि होती है षट्कुमारिका और छप्पन कुमारी देवियां माताकी गर्भ शोधना और सेवा करने इन्द्रकी आज्ञा से आती है और माताकी सेवा करती हैं। यह तो सब तीर्थङ्करों के गर्भ में आने से होता है ऐसा शास्त्र कथन है । इन श्री नेमिनाय तीर्थङ्करका कथन हरिवंश पुराण नेमिपुराण उत्तरपुराण आदि में है भगवान नेमिकुमार गर्भमें कातिक सुदी ६ को आये देवोने रत्नष्टयादि उत्सव मनाया तब हीसे कार्तिक में वटेश्वर (सूरीपुर) क्षेत्र में जिन मन्दिरके सामने दोसो तीन सो फुट लंबा दो मी फुट चौड़ा एक पीठवन्ध चबूतरा भट्टारकोका कराया हुआ है। वहींसे मेला भरता है अब वह मेला सरकारी हो गया है। वटेश्वरका मेला लक्खी गिना जाता है। हाथी, घोड़ा ऊँट बलद आदि मवेशी विकने आते हैं बड़े विस्तार में जमुनाके किनारे दुकाने लगती हैं, बाजार सजते हैं कसेरट कपड़ा मोना, चांदी आदि की दुकाने आती है। अब मेला एक माह पहिले से बन्दोवस्त होता है और कार्तिक सुदी १५ पूनो तक