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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास
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दी । वह युद्धके लिये चल दिया, तब खबर यादवोंको मिली यादव महाचतुर हलकाराही है। नेत्र जिनके यह वार्ता सुनकर जे वयोवृद्ध थे अंधकवृष्टि और भोजक बृष्टिके वंश सो सब मिलकर मंत्र करते भये, धर्मका है निरूपण जिनके यादव विचार करे हैं। जरासिंध तीन खण्डका स्वामी है । अखण्ड है, आज्ञाजाकी सो ओरोकर दूसरोंकर जीता न जाय, महाप्रचण्ड है, और सुदर्शनचक्र खड़ग गढ़ा दंड रत्नादि दिव्यास्त्र केवल कर उद्धत है, और कृतज्ञ है, जो कोई उसकी सेवा करें, तिसका गुण माने हैं। कृतघ्न नाहीं है, और कोई उससे द्वेष करें, और फिर प्रणाम करें तो उसे क्षमा भी करे है । अबतक उसने अपना बुरा नहीं किया, पहिले अनेक प्रकारकी सहायता किये हैं 1 और आपने उसका जमाई कंस मारा। और उसका भाई अपराजित मारा सो उसका बड़ा अपमान भया, इससे उसने चढ़ाई की है, और अपना दैवबल और पुरुषार्थ देखते भी वह बलवान है। और कृष्ण बलदेव ( बलभद्र ) का पुण्य सामर्थ्य तथा पुरुषार्थ वाल्यावस्था ही से लेकर जगत् में प्रसिद्ध है । परन्तु जरासिंधको मालूम नाहीं और