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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २६३ पै महीपसमहेरे हैं ।। भोजराज भोजसम मोजै करै कविनुको परशजुरामजके मुजश घनेरे हैं। हरिवंशवंश संघपति भूपति की कहैं लऊराइ गुनग्रन्थनि गनेरे हैं ॥ उदित उदारो शिर सोहै भूप भारो चारो चक्रमें समान प्रहलाद पुत तेरे हैं ॥६४॥ ___ करि जु विचार मन अति ही हुलास हैके वानिदानी जानि अटल इटायेतेजुधाये हैं। हरिवंश वंश प्रल्ताद सुत माहसीक तुम पै तिहारे ही सुजशने पठाये हैं। शाले सिरो पाये धनकरिके जड़िआकर यो कहै लऊराइ दान पाऊं मनभाये हैं। महाबाहु संघई सपूत मयाराम सुनो जाड़ने सताये सो तुमपर आये हैं ॥६५॥ कवित्त वेद वावरे (मलावन) के गोत्रका
सवैया २३ कंचन कोटि कबई ( कविन ) रुपइयन दे, दीनन के परमान बढ़ावै ।। देवसेन के वंश में साता करै सो जापै, दुखी कोउ होन न पावै ।। शोभाराम बड़ प्रभुशाह को नन्द पै तो ताके भिक्षक दुरिते धावै ॥ तुलाराम को सत्त गहै नन्दराम सो देके अदत्तन को सिखरावै ॥६६।।