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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
कवित्त वरोलिहागोत्रको छप्पय निरपति खान खुम्मान शाह दरवारके मान ॥ दंत हेम हय चोर चरिय पाटम्बर तान ।। अमर भोज सन दिपैदरियाह वाहुविधि रच विशम्भर ॥ कुल कुअर भमानी लोकमान कहैं कवि मुरलीधर ॥ दुख हरत परमानन्द हुलासराय तिहारी वत्त ॥ केह कवि शक्ति तुअ कीर्ति सपूती भुअपर करत ॥६२॥
कवित्त कुदरा गोत्र को लाजको जहाज पर काज कर सबहीको शोभत सभा में जाय जगजश पाई की ।। भाइप भलाई बड़ो लायक सो दखियत कहै बात मांची सोई आप मन भाई को ।। कुदर कोट जिनकी प्राचीन था न शोभित सरस जहाँ तखत राजशाहीको ॥ शहरशकीट दिपै कुदरा परशुराम साशोहत तिलक जाहिपूरोपुरिखाई को ॥६॥
कवित्त संघी गोत्र के
सर्वया ३१ प्रथम भमानीदास नाश करै दुःखनिको मयाराम मही