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२७४ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * राजाकं अन्धक वृष्टि आदि महाशूरवीर पुत्र भये । और वीरके भोजक वृष्टि आदि पुत्र भये । और अन्धक वृष्टि ने कुशाग्र देश में शौर्यपुर बसाया। और मथुरा में सुवीरके पुत्र भोजक वृष्टिने मथुरामें राज्य किया। अन्धक वृष्टिके १० पुत्र भये, समुद्र विजय१ अक्षोभ २ स्तिमित सागर ३ हिमवान् ४ विजय५ अचल ६ धारण ७ पूरण ८ अभिचन्द्र ६ वसुदेव १० इन दशके कारण यह देश दशाह कहलाया
और कुन्ती तथा मांद्री दो कन्या हुई। कुन्ती पाण्डको ब्याही जिसके युधिष्ठिरादि पाण्डव भये, और सुवीरके पुत्र भोजक वृष्टिके पद्मावती राणीसे उग्रसेन महासेन देवसेन ये तीन पुत्र भये। यह हरिवंश हरिकान्तके वंशमें वसु राजा के १० वाँ पुत्र बृहद्ध्वज का विस्तार भया और वसुराजा का नवमा पुत्र सुवसु के वंश में जो नागपुर चला गया था उसके वंश में वृहद्रथ जो मगध देश का राजा भया मगध देश राजगृह नगरी का वृहद्रथ का पुत्र जरासिंध त्रिखन्डी प्रतिनारायण होता भया। और जरासिंघ को पुत्री जीवंजशा कंश को व्याही थी और कंश की वहिन देवकी वसुदेव को व्याही थीं किसी निमित्त ज्ञानी