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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
कहो । इन दोनों कालों में जीवों को सुख ही सुख मिलता है, इनमें भोग-भूमि होती है, दस प्रकार के कल्पवृक्ष होते हैं। उनके नजदीक जाकर मांगने से सब वस्तुएँ मिलती हैं अर्थात् जिस वस्तु की चाह होवे, उसकी इच्छा प्रकट होते ही फूल की तरह उसे उपलब्ध हो मिल जाती है। उस वृक्ष के निमित्त से तथा इच्छा रूप अभिप्राय निमित्त से पुल परमाणुओं का परिणमन उसी रूप होकर वह वस्तु मिलती है। तत्काल अथवा पिछले से ही, जैसे- बालक गभ में आने से ही माता के स्तनों में या गौ के थनों में दूध उत्पन्न हो जाता है, उसी प्रकार समझना। माता के स्तनों में क्या गां के थनों में कोई दूध भरने नहीं जाता, अपने युण्य और पाप के उदय से साधक तथा बाधक सामग्री का मिलाप होता है । यह प्रत्यक्ष दृष्टान्त है कि भोग-भूमि में वे वृक्ष उत्पन्न होते हैं। प्राणियों के पुण्य से और पाप के उदय से वे ही कल्प वृक्ष कर्म भूमिका प्रारंभ होते हो नष्ट हो जाते हैं।
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कल्प वृक्ष दश प्रकार के होते हैं - भोजनाङ्ग, वस्त्राङ्ग, दीपाङ्ग इत्यादि । जैसे आजकल कृत्रिम दीपाङ्ग बिजली
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