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२५८ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * कवित्त कानून गोह का और भी
___ सवैया ३२ द्वार आये उठिक मिलत बड़े आदर सों पान मिजमानी करें नित ही सरसते ॥ हित मित्र पंडित कवीश्वर यों प्रगटन को मोजे नित्तप्रति करें आनंद सरसते ॥ कानूगोह लायक लजीलो करहल मांझ कहत गुलाब बाढ़ो सम्पत्ति अरसते ॥ महासिंघ वंश की बड़ाई बढाई राखें सदा शाखि शाखि सोहं आशा पूरी होत आशाराम के दरशते ॥५६॥
कवित्त बुढेले गोत्र का
___ सवैया ३१ दोऊ सतवादी हैं बुन्यादी मरजादी दोऊ परकाजी पर पीर के हरन है ॥ उदित उदार शिरदार साखि साखि दोऊ मोजकरि भिक्षुकनि भोननि भरन है ॥ मोहन के वंश दोऊ अंश चिन्तामणि के बुलाखीदास प्रेमराज धर्मछिहि धरन है। कहैं लऊ राइ विदित बुढेलिनिमें दोऊ भ्रात करिवे को करनी करन है ॥७॥