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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २५६ कवित्त बुढेलिनि में जखनिया गोत्र को
सवैया ३१ शील सनमान को दिपतु जदुवंशी जोर जिनकं सुयश छाय रहे छिति छोर है ॥ मनोहरदास बंश अंश गंगारामज़ के दे दे दान दीननक दूर कीने रोर हैं। लाज क जहाज शाह कुअरसेन देश देश जाकी कर तू तिनक शोर हैं। कहैं लऊ राइ देखे विदित बुढेलिन में करवे को करनी जखनियाये जोर है ।। ५८ ।।
कवित्त लँबेच मात्र साधारण का
सवैया ३१ मान जस भारो गुण गरु वो गुवर्द्धन सो दानको दिलेल झर कंचन बरस है। जाके सुत साहिब सपूत राजाराम राजै दारिद नशत जाक देखत दरस है ॥ वंश दिलमाहज के अंशशाह भीमसेन को लऊराइ दया-धर्म ही धरस है । करिवे की विविध विवेक ओ विलास सो लँबेचुन में देखे सलाह करनी सरस है ।। ५६ ॥