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२५६ *श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
दानके दयाको हरषिहिम तिहैय्याको पुण्य पूरण मया को महापरम विशाला है । नेकीकों निकाईको सवैहै सुहाई सोभलाई अति आला है ॥ यदुवंशी दिपतलम्बेच इच्छा रामनन्द कहत गुलाव करि मोज प्रतिपाला है ॥ पमारी दुशाला ओमाला बडं मोलनकी आला सो दान करिदई परमानन्दलाला है ॥४०॥
दिन दिन रीझवकसीसे कवि लोगनिको भली अशी से दिपैआनन्दको कन्द है। संतको समाज सिरताज साखि माखिनत अमृतराइ वंश करै दुरेदुख द्वन्द है । इच्छा रामनन्द कुलंकलशा चढायो भलो कहत गुलाब जश होय उदयचंद है। कीनो जगनाम लं भलाई आठो याम सदा सुखनिको धाम दानी देखो परमानन्द है ॥५१॥
कवित्त पचोलये गोत्र की ___ उमड़त लोह घटा घन घुमड़त उत्त भदवरिया चढ़ हसंत ॥ बरषत तीर तुपक मुहवाई टोपी वखत्तर मुगल फसंत ॥ भैयातिभारू किलकारी भारी अति दुर्ग पसेउचु अंत गयदंत ॥ जीतो तो करन घाट पत्तन रज सो राखि रह्यो हंतिकंत ॥ ५२ ॥