________________
* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * १८३ करवाल पट्टि - विप्फुरिय - जीहु
रिउ- दंड - चंड- सुंडाल- सीहु । अइ - विसम - साहसुद्दाम - धामु
चउसायरंत - पायडिय - णामु । णाणा-लक्खन - लक्खिय - सरीरु
सोमुज्जव (ल) सामुद्दय - गहीरु। दुप्पिच्छ - मिच्छ- रण - रङ्ग - मल्ल
हम्मीरवीर-मण . नट्ट - सल्ल। चउहाण - वंस - तामरस - भाणु
मुणियइं न जासु भुय-बल पमाणु । चलसीदि-खंड - विष्णाण · कोसु ।
छत्तीसाउह (प) पडण-समोसु । विषमसमर में भिड़ने वाले वीर हैं। अपने खड्ग के अग्र भाग से उन्होंने शत्रु के चक्र (राजमण्डल ) और वंश को ढा दिया है। वे विपरीत बोध ( मिथ्यात्व ) और माया के विध्वंसक हैं। वे अतुलित बलशाली हैं, खलों के कुल के प्रलयकाल हैं, उनका विपुल भाल राजपट्ट से अलंकृत है। सप्तांग राज्य के धुरे को सम्हालने में उन्होंने अपना कन्धा दिया है, और सम्मान दान से अपने बन्धुओं का पोषण किया है। अपने परिजनों के मन को मीमांसा