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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * कवित्त चंदवरिया गोत्रका
दोहा
(सवैया २३ सा) रसनासो मनकी कहैं चलो इटाये जात ।
खेमीपति चंदवारकी, वहांकी खंडर विख्यात ।। आज भोगचन्द उदित संसारमें देखि तु अदर्शदालिद्र भाजै । नेम अरु धर्मको व्रत्त पाले रहै जैनकी जुगतिको कौन लाजै॥ कहैं कवि सिन्धु तुअ सिन्ध को धोरो
___ न कोई धर्म अरु सत्यकी डांक दरबार बाजे । आर औ पारके शाह चर्चा करै ___ खेम चंदवारपति इम् विराजै॥ ११ ॥
छप्पय छंद अधिक जिस समये दुक्काल सत्तु छाड़ो संसार हो । पन्द्रहसे तेतालिस मंत्र कीयो रविपरिवार हो। शक्तिसिंघ सनमान दान जैन भुअन करायो । धनि वदयारे निषेत कुल कलश चढायो । कित्तुहवंश शाह धारहुअ अस्मसी अरीअन मुखमंड्यो । भनिमल्लदीप प्रघटे हुते सो मंगनंरोर विहंड्यो ।॥ १२॥