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२५२ ॐ श्री लँबेचू समाजका इतिहास * सोनी सपूतई कीर्ति जहानमें सोहति है शिर तेरे भलाई, कञ्चन देत कपूरेको नन्द सिराहत हैं सिरदारी सवाई। सावित मौजक सवितासुअ कीरति चारिह चक्र भलाई, तुलसी परमानन्दलाल तेरे ही लालकी राखे भलाई ॥४०॥
___ कवित्त फिर सोनी गोत्रके
पूजा पर कारज के करिक थलोड़ा सींचि सुकृत मुधा सों दानी वारिकर वरु है। पुण्य जर पूरण प्रताप शाखा पूरि रही दया धर्म पल्लव प्रकाशे हर वरु है । कहत भवानी जश कीर्ति रुप फल लागे। पक्षी जाचकनि को गरीव पर वरु है ॥ हेलिकर वर देत हेमझर वरु मोई सोनी सरवरु तहां तारातर वरु है ॥४१॥
कवित्त पटवारी गोत्रका नेम धर्म जप तप संजम में सावधान रहे दै दै दान दीनन की विपता विदारी है। बड़ी बड़ी करनी करतूतें शाखि शाखि भई जाहर जहान जाकी कीर्ति जगजारी है ।। टेकचंद बंश भये अंस वालचन्दजके उमेदराइलालज की सदा सिरदारी है। कहैं लऊराइ जाकों खलक सरा हैं शाह रसकीर्ति ऐसे दिपत पटवारी हैं ॥ ४२ ॥