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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २४५ जशके जशीले आछै वटमल ओ फूलचन्द।
कहत गणेश पूरे पारस परस हैं ।। हेमराजज़के नन्द जाहर जहान बीच
कोसाडिमें* प्रगट वकेवरिया सरस हैं ॥२२॥ और भी बजाज गोत्रके कवित्त १८०५ के
भुजङ्गप्रयात छन्द हरीसिंह को पुत्र आनन्दकारी ॥ दुलीचन्द देखो सदा धर्म धारी ॥ केशरी सिंहके पुत्र गोकुल वखाने जवाहर सुतिन के महा मोद माने ॥ कर दर दिल दर्द दिल मुख सुलाला सुठाकुर सदासो बोले वचत्त रमाला। पढ़ी जोर बंशावली यो वखानी। बढोवेलि जिनकी मुपजा सुठानी।२३।
दोहा
जो नारे बहु विधि करी, दान सबै विधि दीन । मूलचन्द धन पालने, जगत बड़ी जश लीन ॥२४|| अठारह से पाँच है सम्बत् चलो विचार । मारग सुदि सात दिना औरहु शुक्कर वार ॥२५॥ * कोसाड़ि (ग्राम का नाम)