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लक्ष्मण कवि-कृत
अणुव्रत-रत्न-प्रदीप ( तेरहवीं शताब्दि की एक अपभ्रंश रचना) [ लेखक-श्रीयुत प्रो० हीरालाल जैन, एम०ए०, एल०एल०बी० ] १, पोथी-परिचय ___ 'अणुवय रयण-पईव' ( अणुव्रत रत्न-प्रदीप ) की जो प्रति मुझे प्राप्त हुई है वह ११"४५" आकार के ११० कागज के पत्रों पर समाप्त हुई है। नीचे उपर, दाये बांये १ इञ्च का हांसिया छोड़कर प्रत्येक पृष्ठ पर कहीं १० और कहीं ११ पंक्तियाँ हैं। प्रत्येक पंक्ति में लगभग ४२ अक्षर हैं। पत्रों के बीच में, पुरानी रीति के अनुसार, कुछ स्थान छूटा हुआ है। कागज पुराना होने से कहीं. कहीं पत्र बीच बीच में फट गये हैं जिससे कितने ही अक्षर नष्ट हो गये हैं। मूल प्रति १०६ में पत्र पर समाप्त हो गई है। उसका अन्तिम वाक्य है 'संवत् १५७५ वर्षे श्रावण शुदि ३ शनौ'। यह स्पष्टतः प्रति के लिखे