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॥ श्रीः ॥ अब कविता ( कवित्त ) रायभाटोंके जो हमको रायवदियनगरी (रायनगर में ) पुराने मिले हैं प्रत्येक गोत्रके प्रकाशित करते हैं। जिसको भोकरमें रायवद्दिय लिखा वह नगरी रायनगर जसवन्तनगर और करहलकं बीचमें है, पुराना खड़ा है। वहींसे पुराने कवित्त लाये हैं, रायभा नहीं।
कवित्त सघईनको
(सवैया ३१ सा) धर्म धुरधीर आँगे संघई हमीर हुते, तिन ही की महिमा मर्याद को धुरस है। हरदासवंश धनकर अंशमनीराम आठोजाम कंचन बरस है । तिन सुत इन्द्रमणि जादोराइ, ओ विहारीलाल राजाराम शील शर्मको धरस है । कहैं लऊराइ चित्त महासुख पाइ, दान अरु जशको सँघई सरस है ॥१॥
कवित्त पोद्दारगोत्रको
(सवैया ३१ सा) जोही शान आँगे मण्डल सुसिद्ध राखी, लीनो यश टीको पोद्दारीको करायो है । जोही शान आँगे नेमीदास राम