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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
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इससे स्पष्ट हो गया कि उक्त उल्लेखों की चंदवाडी यही चन्द्रवार है, और निस्सन्देह यही प्रस्तुत ग्रन्थ का चंदवाड नगर है ।
५. कवि तथा काव्य - परिचय व रचना - काल
ऊपर ग्रन्थ रचना -- विवरण में कह आये हैं कि इस ग्रन्थ के कर्ता 'लक्खण' (लक्ष्मण) कवि हैं, और वे जमुना नदी के तटवर्ती 'रायवहिय' नगर के निवासी थे । सन्धिपुष्पिकाओं तथा अन्तिम प्रशस्ति में उन्होंने अपने पिता का नाम 'साहुल' और माता का 'जड़ता ' प्रकट किया है और यह भी कहा है कि उनका कुल 'जायस' था, अर्थात् उनके पूर्वज जायस नगर से आये थे और इस लिये वे जायसवाल या जैसवाल थे ।
अन्तिम प्रशस्ति में कवि ने अपनी रचना का प्रमाण
इस काव्य में भिन्न
आदि भी स्पष्टतः बतला दिया है। भिन्न प्रकार के २०६ पद्धडिया छंद हैं जिनकी ३२ अक्षरी कुल ग्रन्थ-संख्या ३४०० है, तथा बड़े बड़े आठ सर्ग हैं | इसकी रचना में कवि को क्रम-क्रम से नौ मास लगे, और ग्रन्थ विक्रम संवत् १३१३ कार्तिक कृष्ण ७, दिन गुरुवार