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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २२५ शक्ति नित्य क्षीण हो रही है। अब कोई ऐसा उपाय करना चाहिये जिससे कुछ धर्मार्जन होवे | ऐसा विचार करतेकरते बहुत रात्रि व्यतीत होने पर कवि को गाढ़ी निद्रा आ गई । तब स्वभ में उन्हें शासन-देवता ने दर्शन दिया और कहा 'हे शुद्ध स्वभाव, कवि-कुल- तिलक, जिन - धर्म - रसाययनपान तृप्त ! तुम धन्य हो, जो तुम्हारी ऐसी चित्तवृत्ति हुई । अब तुम्हें जो चिन्ताक्लेश व्याप रहा है उसे छोड़ दो और मनमें दृढ़ संकल्प कर लो। आहवमल्ल राजा के जो प्रधान महामन्त्री 'कण्ड' हैं वे बड़े गुणग्राही, धर्मिष्ठ, सम्यक्त्वी आसन्नभव्य हैं, श्रावकोंके व्रतोंको पालते हैं और गर्वरहित हैं, वे तुम्हारे मन के संशय (चिन्ता) को दूर करेंगे और तुम्हारे कवित्व को प्रकाशित करेंगे । अब तुम मन में आलस न लाओ और इस कार्यमें मन्दता मत दिखाओ। उनके नाम से श्रावक - व्रतों का विस्तार से वर्णन करने वाला एक काव्य रचो ।'
ऐसा कह कर और कवि के मन की बड़ी भारी चिंता को दूर करके अंबादेवी चली गई। प्रातःकाल उठ कर जिन वन्दना के पश्चात् कवि के मन में वही रात्रि के स्वप्न
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