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२२८ *श्री लँबेचू समाज का इतिहास * इस विभाग पर चौहानवंशियों का राज्य था यह सविख्यात है। पर प्रकाशित वंशावलियोंमें उक्त राजाओं के नाम नहीं पाये जाते । यह कोई शाखावंश रहा होगा।
उक्त राजवंश के साथ साथ ही कवि के आश्रयदाता 'कण्ह' के वंश का परिचय कराया गया है। यह 'वणिकवंश था और इसका राजवंश से बहुत घनिष्ठ संबन्ध था। उसी 'चन्दवाड' नगर में लंबकंचक अर्थात् लंबेचू-कुल में 'हल्लण' नगरसेठ हुए जो बड़े राजप्रिय और लोकप्रिय थे। उनके पुत्र अमृतपाल (अमयवाल) हुए। वे भी राजमान्य
और अभयपाल राजाके प्रधान मन्त्री थे। उन्होंने एक बड़ा विशाल और भव्य जिनमन्दिर बनवाया जिसपर सवर्ण कलश चढ़ाया। उनके पुत्र 'सोढ' साहु हुए जो 'जाहड' नरेन्द्र और उनके पश्चात् फिर 'श्रीबल्लाल'के मन्त्री बने । 'सोद' साहु के दो पुत्र हुए–प्रथम रनपाल, और दूसरे 'कण्हड' जिनकी माता का नाम 'मल्हा' (मल्हादे) था। ये बड़े धर्मिष्ठ और सदाचारी थे। रत्नपाल बड़ी स्वतन्त्र
और निर्गल प्रकृति के थे, पर उनके पुत्र 'शिवदेव' बड़े कलाबान, विद्यावान् और कुशल हुए। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् नगरसेठ के पद पर वे ही विराजमान हुए
और आहवमल्ल राजा ने अपने हाथ से उनका तिलक किया। उनके काका 'कण्हड' आहबमल्ल राजा के मंत्री