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२२६ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * की बात झूलने लगी। उन्होंने देवी की प्रेरणा के अनुसार कान्य रचने का निश्चय कर लिया और मन में विचारा 'इस महीतल पर धन्य है वह जिसके नाम पर अब मैं काव्य रचना करता हूं।'
एक दिन महामन्त्री 'कण्हड' किसी पश्चात्तापसे जिनमन्दिर में बैठे थे। उसी समय 'लकखन' कवि भी वहां जा पहुंचे और उनसे अपना रात्रि का स्वम कहा। तब 'कण्ह' ने बड़ी भक्ति-सहित उनसे सागारधर्म पूछा। उत्तर में कवि ने विस्तार से उन्हें श्रावकधर्म सुनाया जो कि शेष ग्रन्थ का विषय है। ३ राजवंश व कवि के आश्रयदाता
कवि ने अपने समय के राजवंश का भी उल्लेख किया है। ऊपर कह आये हैं कि कवि, रायवद्दिय नामक एक महानगरी के निवासी थे। यह नगरी जमुना नदी के उत्तर तट पर स्थित थी। यहाँ कवि के समय अर्थात् वि० सं० १३१३ (ई० सं० १२५७) में चोहानवंशी राजा
ओहवमल्ल राज्य करते थे। उनकी पटरानी का नाम 'ईसरदे' था। आहबमल्ल ने म्लेच्छों अर्थात मुसलमानों