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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
सेणिय-महाराय.सम्मत्त-कहठ्या वरण्णणो णाम परिचछेउ सम्मत्तो ॥४॥
५ इय अणुवय रयण-पईव सत्थे महसावयाण सुपरण्ण परम.तेवण्ण-किरिया-पयडणसमर्थ सगुणसिरि.साहुल-सुवलकखण-विराइए भव्य-सिरि कण्हाइच णामंकिय सत्त.वसणपरिहरण-मम्मत्त-वित्थरणो णाम पंचमो परिचछेउ सम्मत्तो ॥५॥
६ ( ऊपर के समान ) - कण्हाइच . णामंकिए दाण पहाव.फल-संपत्ति-चण्णणो णाम सत्तमो परिछेउ सम्मत्तो ॥६॥
......महामंति-कण्हाइच-णामंकिए सत्त.पडिमविछित्ति.वण्णणो णाम सत्तमो परिच्छेउ समत्तो ।।७।।
८.........भव्य मिरि.........किए सावयारविहि-सम्मत्तणो णाम अट्ठमो परिच्छेउ सलत्तो ॥८॥ नोट :-यह अणुव्वयपईव ग्रंथ श्रीमान् प्रोफेसर साहव हीरालालजीन नागोरके
शास्त्र भंडारसे उपलब्ध कर श्री जैनसिद्धान्त भाष्कर भाग ६ किरण ३ में अनुवाद कर छपाया और इसकी रचना करनेवाले श्रीमान् कवि लक्ष्मण कवि है। विक्रम सं० १३१३ में इसकी रचना हुई। यह प्रस्तावना पहिले छापना था पर कारणवश भूल से रह गई वह अब प्रकाशित कर रहे हैं।