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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
पद्धडिया बंध सुप्पसण्णु
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अवगमउ अत्थु भव्वयण तण्णु ।
हीणक्खरु मणेवि इयरु तत्थु
संथवउ अण्णु वज्जेबि अणत्थु ।
जं अहियक्खरु मत्ता - विहाउ
तं पुसउ मुणिवि जणियाणुराउ ।
सय दुण्णि छ उत्तर अत्थसार पडूडिय
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बुझहु तिसहस सय चारि गन्थ
२१५
छंद णाणा
चदुदुहय सग्ग पिहू पहु पमाण
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बत्तीसकखर णिरु तिमिर मंथ |
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पयार ।
सावय - मन वोहण सुद्ध-ठाण ।
पद्धडिया बंध से सुप्रसन्न होकर तद्ज्ञ भव्यजन इसका अर्थ समझ लें । जो कुछ इसमें हीनाक्षर व अन्य दोष हो उसे अनर्थ बचा कर ठीक कर ले। जो कुछ अधिकाक्षर व मात्रा - विघात हो उसे जानकर अनुराग से ठीक कर लें। इसमें दो सौ छह अर्थसार और नाना प्रकार के पद्धडिया छन्द तथा तिमिर (अज्ञान के अन्धकार) को दूर करनेवाले बत्तीस अक्षरोंके तीन हजार चार सौ ग्रन्थ श्लोक इसमें जानो और बड़े बड़े प्रमाण के, श्रावकों के मन का संबोध करनेवाले शुद्ध स्थान आठ सर्ग । विक्रमादित्य कालके तेरह