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महसइ लक्खन तहु पाणणाहु
तहो पणय
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श्री लँबेचू समाजका इतिहास #
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कण्हडु वणिव जण सुप्पसिद्धु
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पुर परिहायार पलंव - बाहु ।
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वसेन वियक्खणेण
महमहणा
साहु उहो घरिणि जड़ता - सुएण सुकइतण गुण
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अहमल्ल - राय - महमति रिद्ध |
जायस कुल गयण - दिवायरेण
अणसं जमी हिं
इह अणुवय रयण पई कन्
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कड़णा लक्खणेण ।
विज्जाजुएण । - |
विहियायरेण ।
विरयउ सुसति परिहरिवि गव्
के अमृत से जिनका शरीर पुष्ट होता था, गुरु और देव के चरण कमलों के भक्त, विनय से अलंकृत, व्रत और शील युक्त, महासती लक्षणा के प्राणनाच, नगर की परिखा के आकारसदृश लम्बी भुजाओं वाले, लोक में सुप्रसिद्ध, आहवमल्ल राजा के समृद्धिशाली महामन्त्री अवनिपति जागीरदार कण्ड्ड के प्रेमवश, विचक्षण महामति कवि लक्ष्मण, 'साहुल' की गृहिणी 'जइता' के