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* श्री लंबेचू समाजका इतिहास * १९१ इउ पभणेवि भंजिवि मण-महत्ति
गय अंबादेवी णियय थत्ति । परिगलिय-विहावरि गोसे बुद्ध
कइ लक्खणु संज़म-सिरि-विसुद्ध । जिणु वंदिवि अजिवि धम्म-रयणु
णिज्झायइ मणे सालसिय णयणु । मुहु मुहु भावइ जं रयणि वित्त
___ अंबादेविए पणिउ पवित्तु । तमलीउ ण हवइ कयावि सुण्णु
__मह मण-चिंतासा-धवणु पुष्णु। गंजोल्लिय-मणु लक्खणु वहउ
सीयरिउ कन्व-करणाणरूउ । विलास बुधजनों के मुखके मण्डन होने की अमिलाषा रखता है, वद आनन्द का लतागृह और अमित कान्तिवाला है। पर उसे अभी यहां कोई जानता सुनता नहीं है। मैंने अशुभ कर्मों में अपनी स्वभाव-परिणित लगा रखी है जिसके उदय से मुझे दुःखविभाव सहना पड़ेगा। इस तरह मेरा यह विशेष कवित्वगुण नित्य सब बहा जा रहा है । किस उपाय से धर्मार्जन किया जाय ? इस भुवन में कोई सुन्दर उपाय करना चाहिये, जिससे अब जल्दी