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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास - १ पट्टाहियारि संपुण्ण - गत्तु
वियसिय - सरोय - संकास - वत्त । आयु-क्खए सो सिरि रयणवाल
गउ सग्गालए - गुण-गण-विसालु। तहो पच्छए हुउ सिवएव साहु
पिउपट्टि बइठउ गलिय - गाहु । अहमल्ल - राय - कर-विहिय-तिलउ
महयणहं महिउ गुण-गरुव-णिलउ । सो साहु पइटिउ जणिय - सेउ |
सिवदेउ साहु कुल - वंस - केउ । पत्ता-जो कण्हड पुवुत्तउ, पुण्ण प3
उत्तउ, महि-मंडलि विक्खायउ ।
की शोभा से समृद्ध है, तथा चारो वर्णों के आश्रित जनों को द्धि से समृद्ध है। वहाँ के भूपाल श्री 'भरतपाल' हैं जो अपने देश और ग्राम के निवासियों के रक्षक हैं। वहाँ 'लंबकंचुक' कुल-रूपी: आकाश के भानु पुरपति 'हल्लणु' सब में प्रधान हुए। वे नरनाथ की सभा के मंडन, लोगों के प्यारे और जिन-शासन में परिणति
१. मूल में यउत्तउ पाठ है।