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२०२ श्री लँबेचू समाजका इतिहास * जहां चंद - चडाणुगामी भवाणी
जहा सब्यवेइहिं सव्वंग - वाणी । जहा गोत्त - णिहारिणो रंभरामा
रमा दानवारिस्स संपुण्ण - कामा । जहा रोहिणी ओसहीसस्स सण्णा
महड़ढी सपुण्णस्स सारस्स रण्णा । जहा मूरिणो मुत्तिवेई मणीसा
किसाणस्स साहा जहा रूवमीसा ?
__ जो साहु 'सोढ़' वहाँ पुर-प्रधान, जन-मन-पोषण और गुणमणि-निधान थे उनके प्रथम पुत्र श्री रत्नपाल' हुए और दूसरे 'कण्हड' जिनका भाल अर्द्धचन्द्र के समान था। ये ( कण्हड ) 'मल्हा' के पुत्र खूब प्रसिद्ध हुए। x x x उन्होंने जिनालयों के उद्धार का धर्मभार धारण किया। उनका चारित्र सुन्दर और जिन शासन के अनुसार था। वे प्रतिदन गन्धोदक से अपने को पवित्र करते थे और मिथ्यात्व तथा व्यसन की वासना में विरक्त रहते थे। उन्हें बल्लालदेव (भोजवंशी)नरपति ने शत्रु राजारूपी गौओं के गोपालराज बनाया था। रतन साहु 'सर्वेसर्वा व्यापार में निरर्गल और गंभीर चित्त थे । उनके प्रथम पुत्र शिवदेव हुये जो गंधहस्ती के समान दानवंत थे। वे समस्त