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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २०१ स-पासाय - कासार - सारा-मराली
. किवा-दाण-संतोसिया वंदिणाली । पसण्णा सुवायार अचंचेल चित्ता
रमा राम रम्मा मए बाल णित्ता । (१) खलाणं मुहंभोय - संपुण्ण - जुण्हा
पुरग्गो महासाहु सोढम्स सुहा । दया - वल्लरी - मेह - मुकंबुधारा
सइत्तत्तणे सुद्ध सीयावयारा ।
राज-व्यापार-कार्य में प्रधान थे। उन्होंने एक जैन मन्दिर भक्तिसहित निर्माण कराया जिसने अपनी ध्वजावली से सूर्य के तेज को *क दिया । वह अपने कूट शिखर के अग्रभाग से आकाश को छूता था और सुवर्ण के कलश से बड़ा सुन्दर और सौम्य था।
उसके चतुःशाल और तोरण की बड़ी शोभा थी, वह पट-मंडव की घंटरियों से झनझनाता था। उनके पुत्र श्रीशाह 'सोढ' हुए जो 'जाहड' नरेन्द्र के प्रधान मंत्री हुए। इस लक्ष्मीवान् राजा का प्रथम नन्दन लोगों के मन को आनन्द देनेवाला श्रीबल्लाल नरेश्वर हुआ जिसने अपने रूप से कामदेव को जीत लिया, जो
शुद्धाशय थे।
२ मूल में 'सवाया' पाठ है।